झूठी-अर्थनीति और कमजोर विदेशनीति की नसों में ‘‘गरम-सिंदूर’’ कैसा ?

कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रेल 2025 को 27 पर्यटकों पर पड़ोसी मूल्क आतंकवादियों द्वारा जान लेवा हमलों से, जानें चली गई। जिससे पूरा देश शोक-संतप्त एवं आक्रोशित हो उठा। 6 मई की रात को देश के जांबांज सेनाओं द्वारा पड़ोसी मूल्क के सीमा मे हवाई-हमले करके-आतंकवादियों के ठिकानो को नष्ट कर दिये। देश के सेनाओं पर देशवासियों को गर्व है। भारतीय सेनाओं द्वारा इस सफल रणनीति को ‘‘ऑपरेशन -सिंदूर’’ के नाम देकर, 27 पर्यटकों की विधवाओं के सम्मान की रक्षा के लिए रेखांकित है। किंतु आज ‘‘ऑपरेशन-सिंदूर’’ के नाम पर चुनावी एजेंडा बनाकर जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किये जा रहे है। इसी संदर्भ पर एक माह बाद विश्वगुरू ने राजस्थान के बिकानेर की सभा में पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर पलटवार करते हुए कहा कि-मेरी नसों में लहू नही, ‘‘गरम सिंदूर’’ वह रहा है। शरीर विज्ञान के अनुसार मानव शरीर में खून बहता है। देश की अर्थनीति और कमजोर विदेशनीति की नसों में ‘‘गरम सिंदूर’’ कैसे बहेगा ? शायद महामानव के नसों मे ‘‘गरम-सिंदूर’’ बहना, आश्चर्य की घटना बन सकता है। इसके पहले विश्वगुरू कहा कि में मेरे नसों में पैसा बहता है। तो कभी कहा मेरी नसों से व्यापार है। इस तरह भारतीय-सुहागन-महिलाओं की सिंदूर की पवित्रतता पर ढोल पीटा जा रहा है। और बजारों, चौक-चौराहों पर ‘‘सिंदूर’’ पर चर्चाये खूब जोरो से हो रही है। ‘‘सिंदूर’’ पर कई फिल्म भी बन गई है। (उधार का सिंदूर, सिंदूर एवं मांग भरो सजना) इसके अलावा मशहूर फिल्म में सिंदूर की महत्ता पर संवाद है कि-‘‘तुम क्या जानों रमेश बाबू, एक चुटकी सिंदूर की कीमत’’। दूसरी तरफ सत्तारूढ़ राजनैतिक दलों के हस्तीयों ने सिंदूर की सरेराह अपमान करते हुए, पुरूष प्रधान समाज को रेखांकित करने की प्रयास जारी है।
पड़ोसी मूल्क पर, देश के जांबाज सेनाओं ने कई बार आक्रमण करके सबक जरूर सिखाये हैं। किंतु पड़ोसी मूल्क अपने नापांक-इरादों से कभी भी बाज नही आये। वरन पड़ोसी मूल्क देश सीमाओं पर लगातार ‘‘सीज-फायर’’ का उल्लंधन करते आ रहा है। 6 मई की रात से 10 मई 2025 तक देश जांबाज सेनाओं ने पड़ोसी मूल्क पर आक्रमण करके, आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिये। इसी दरम्यान 10 मई को अमेरिका के दबाव के चलते देश के सेनाओं को ‘‘सीज-फायर’’ करना पड़ा। किंतु अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश को अपने सैन्य-ताकतों का प्रदर्शन करने का मौका मिला है। देश वासियों को अफसोस जरूर हुआ कि-घर में घुसकर हमेशा के लिए सबक सिखा देना के लिए वंचित रह गये। 1971 को पड़ोसी मूल्क को भारतीय सेना द्वारा अदम्य साहस और वीरता के साथ सबक जरूर सिखाये थे। उस वक्त भी अमेरिका के मध्यस्थता में देश के सेनाओं द्वारा ‘‘सीज-फायर’’ जरूर हुआ किंतु नियम-शर्तो के साथ एवं 90,000 पड़ोसी मूल्क के सेनाओं एवं हथियारों के साथ ‘‘आत्मसमर्पण’’ और लिखित समझौता के उपरांत ही ‘‘युद्ध-विराम’’ की घोषणा हुई। सबसे ज्यादा दुख की बात हे कि 10 मई 2025 को अमेरिका के पुनः मध्यस्थतता के कारण युद्ध विराम जरूर हुई किंतु न कोई लिखित और समझौता और न ही दुश्मन मूल्क के सेनाओं की आत्मसमर्पण हुए बगैर ‘‘युद्ध विराम’’ की घोषणा से पड़ोसी मूल्य तबाह होने से बच गया है। किंतु दुख की बात है कि शहादत हुए देश की सेनाओं की विधवाओं की सिंदूर का व्यवसायिकरण और उनकी पवित्रता को भंग आज तक नही की गई है। अफसोस की बात है कि शहीदों के विधवाओं की ‘‘सिंदूर’’ को चुनाव-जीतने के लिए सत्तारूढ़ दल द्वारा ‘‘मूलमंत्र’’ बना लिये है। और तो और दिखावटी तौर पर नारीशक्ति की वंदना करने के लिए बड़े-बड़े आयोजन किये जा रहे है। दूसरी तरफ नारीशक्ति का अपमान, खुले मंच के अलावा भीड़ ग्रस्त सड़को पर सरेराह किया जा रहा है।
पूरे देश में सेना की शौर्य एवं वीरता की प्रशंसा की जा रही है। दूसरी तरफ सत्तारूढ़ दल के खुशमदगारों की संख्याओं में एक से बढ़कर एक अपने विश्वगुरू की महानता की तारिफ करके सिर्फ अपनी पहचान को चमका रहे है। इन सभी नेताओं का कहना है कि हमारे-विश्वगुरू के कारण ही सेना युद्ध मैदान में सेना ने, दुश्मनों को मात दे पाई है। इसलिए इस जीत का श्रेय सेना नही हमारे-विश्वगुरू की महानता है। कभी-कभी तो खुशामदगारों को अपने विश्वगुरू की तारिफ करते-करते ऐसे जबान फिसल जाती है। पर जिम्मेदारी दूसरों पर मढ़ दी जाती है। वर्तमान समय में सतारूढ़ दल द्वारा प्रेस की महत्ता को कम करके आंकी जा रही है। सेना की अदम्य साहस एवं वीरता के सामने देश नतमस्तक है। किंतु सत्तारूढ़ दल के अल्पज्ञानी और खुशामदगारों ने युद्ध में जीत का श्रेय सिर्फ इनके विश्वगुरू को दे रहे है। इन बेसुरों में म.प्र. के आदिमजाती कल्याण मंत्री विजय शाह द्वारा भारतीय महिला सेना-अधिकारी कर्नल साफिया कुरैशी की आतंकवादी की बहन कहकर देश के सेना का अपमान किये है। इसी तरह म.प्र. उपमुख्य मंत्री जगदीश देवड़ा ने एक कदम अपने बढ़कर, चरम खुशामद की पहचान के साथ कहा कि- देश और देश की सेना, इनके विश्वगुरू के चरणों के आगे नतमस्तक है।
इसके अलावा म.प्र. के राज्य सभा के सतारूढ़ दल के सांसद रामचंद धाकड़ ने 27 पर्यटकों को ‘‘अग्नीवीर’’ के प्रशिक्षण नही लेने के कारण पहलगाम में मौते हुई है और इनके विधवाओं में ‘‘वीरगाननाओं’’ की भाव की कमी है। इस तरह सत्ता के नशे मदमस्त होकर सतादल के नेताओं ने देश की जनता को महा-मूर्ख समझकर, उनके सामने ही उनका अपमान करते है। और तो और ‘‘सिंदूर’’ की लज्जा का शील-भंग मंदसौर के सत्तारूढ़ दल के नेता द्वारा खुलेआम हुई की घटना से पूरा देश शर्मसार है। किंतु देश का विश्वगुरू की चुप्पी से ऐसे अपराधिक मानसिकता वाले जनप्रेतिनिधी हौसला बढ़ता जा रहा है।
देश ने 2014 तक ‘‘भारतीय लोकतंत्र’’ की सर्वोच्च ऊंचाई देखी जरूर है। किंतु 2014 के बाद ‘‘भारतीय लोकतंत्र’’ की गरिमा सबसे नीचे स्तर तक पहुंचने पर संपूर्ण देशवासी दुखित एंव आक्रोशित है। लोकतंत्र का असली मालिक जनता, अपना बहुमूल्य निर्णय जरूर सुनाईगी। इसके अलावा देश की जनता, लोकतंत्र एवं संविधान की रक्षा करते हुए, अद्भूत परिणाम को सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध हो चुकी है।
तपन चक्रवर्ती


