वजन उठाइए सेहत बनाइए : स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से बढ़ेगी उम्र, जानें फायदे

एक समय के बाद स्वाभाविक रूप से महिलाओं की मांसपेशियों का भार कम होने लगता है। बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं के शरीर में हॉर्मोन का उत्पादन कम होने लगता है और इसका असर मांसपेशियों की मजबूती पर पड़ता है। इसी समय स्ट्रेंथ ट्रेनिंग प्रभावी साबित होती है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी द्वारा चार लाख महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि हर पांच में से मात्र एक महिला नियमित रूप से स्ट्रेंथ ट्रेनिंग यानी वजन उठाने वाले व्यायाम करती हैं। वहीं, इसी अध्ययन में यह भी पाया गया कि जो महिलाएं सप्ताह में दो से तीन दिन स्ट्रेंथ ट्रेनिंग वाले व्यायाम करती हैं, उनकी न सिर्फ औसत उम्र ज्यादा होती है, बल्कि इन्हें दिल की बीमारियों का खतरा भी व्यायाम न करने वाली महिलाओं की तुलना में कम होता है।




क्या है स्ट्रेंथ ट्रेनिंग?
वेटलिफ्टिंग या भारी वजन उठाने वाले व्यायाम स्ट्रेंथ ट्रेनिंग भी कहलाते हैं। इनसे मांसपेशियों की शक्ति और सहनशक्ति बढ़ती है। इस व्यायाम को करने के लिए वेटलिफ्टिंग मशीनों, वजन या व्यायाम में प्रयोग होने वाले रेसिस्टेंस बैंड आदि का इस्तेमाल किया जाता है। वेटलिफ्टिंग एक्सरसाइज के लिए खुद शरीर का वजन उठाना जैसे कि पुश-अप्स और स्क्वैट्स आदि व्यायाम भी किए जा सकते हैं। यश फिटनेस के संस्थापक और कोच यश अग्रवाल कहते हैं, ‘ मांसपेशियों की मजबूती के लिए जरूरी है कि नियमित रूप से स्ट्रेंथ ट्रेनिंग की जाए। आपको सप्ताह में चार से पांच दिन भारी वजन उठाने वाले व्यायाम करने का लक्ष्य रखना चाहिए। वेटलिफ्टिंग महिलाओं के हड्डियों के घनत्व, मांसपेशियों के भार और मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त करने में प्रभावी साबित होता है। इसे करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में समग्र रूप से सुधार होता है। साथ ही यह वजन प्रबंधन, हृदय रोग और मधुमेह जैसी पुरानी बीमारियों के जोखिम को कम करने और रोजमर्रा के कामकाज करने की क्षमता को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’
सभी उम्र की महिलाओं के लिए फायदेमंद
जर्नल ऑफ एक्सरसाइज साइंस एंड फिटनेस के अनुसार, ‘वेटलिफ्टिंग महिलाओं को हर उम्र में लाभ प्रदान करती है। यह हड्डी बनाने वाली कोशिकाओं को सक्रिय करती है और हड्डियां मजबूत और सघन बनती हैं। महिलाओं के लिए बोन डेंसिटी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनके जीवन के अंतिम वर्षों में हड्डियों के पतले होने और ऑस्टियोपोरोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है।’ हार्वर्ड हेल्थ पब्लिशिंग के अध्ययन बताते हैं कि 10-16 वर्ष की जो लड़कियां नियमित रूप से वेट लिफ्टिंग करती हैं, वे आत्मविश्वास से भरपूर रहती हैं।
गर्भावस्था और प्रसव में लाभदायक
वेटलिफ्टिंग करना महिला के शरीर को स्वस्थ गर्भावस्था और प्रसव के लिए तैयार करने में मदद कर सकता है। गर्भावस्था के दौरान वेटलिफ्टिंग थकान और ऊर्जा की कमी की समस्या को दूर करती है। यह सिजेरियन डिलीवरी की जरूरत को भी कम करती है। मजबूत शरीर और नियमित व्यायाम गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं जैसे गर्भावस्था के दौरान होने वाला मधुमेह, प्रीक्लेम्पसिया और प्रसव के बाद होने वाले अवसाद के जोखिम को भी कम कर सकती है। यदि किसी महिला को गर्भावस्था संबंधी कोई जटिलता नहीं है और वह पहले से स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करती आ रही है, तो वह गर्भावस्था के दौरान भी इसे कर सकती है। गर्भावस्था के दौरान या प्रसव बाद तुरंत इसे करना चाहिए या नहीं, इस संबंध में अपने डॉक्टर से पहले सलाह जरूर लें।
मेनोपॉज के बाद की जरूरत
मेनोपॉज के बाद महिलाओं के लिए मांसपेशियों का निर्माण और रख-रखाव सबसे अधिक जरूरी होता है, ताकि उम्र बढ़ने के साथ होने वाली मांसपेशियों की हानि से वे निपट सकें। वेटलिफ्टिंग आमतौर पर मेटाबॉलिज्म संबंधी बीमारियों जैसे कि मधुमेह से बचाने और मेनोपॉज के बाद वजन बढ़ने की समस्या को रोकने में भी मदद करती है। मेनोपॉज के दौरान वेटलिफ्टिंग करने से अल्जाइमर रोग सहित उम्र से संबंधित संज्ञानात्मक गिरावट का जोखिम कम होता है, जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द से राहत मिलती है, ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा कम होता है और शारीरिक संतुलन बेहतर होता है।
धीमी करें शुरुआत
चोट से बचने के लिए शुरुआत में महिलाओं को बिना वजन का उपयोग किए सिट-अप्स और स्क्वैट्स जैसे व्यायाम करने चाहिए। कुछ हफ्तों के बाद वे हल्के वजन या कम प्रतिरोध वाले बैंड का उपयोग कर सकती हैं। शुरुआत में ऐसा वजन चुनें, जिसमें शरीर का सही पोश्चर बरकरार रखते हुए आप एक से तीन सेट में आठ से 15 बार कोई एक व्यायाम कर सकें। जैसे-जैसे ताकत बढ़ेगी, वजन, व्यायाम व सेट की संख्या बढ़ाएं। व्यायाम हमेशा एक्सपर्ट की देखरेख में ही करें।
ध्यान रखना है जरूरी
वेटलिफ्टिंग ताकत और मांसपेशियों के विकास के लिए फायदेमंद तो है, लेकिन इसके कई नुकसान भी हो सकते हैं। अगर सही तकनीक न अपनाई जाए, तो इससे चोट लगने का जोखिम होता है। मांसपेशियों में दर्द और अकड़न की आशंका भी बनी रहती है। विशेषज्ञ की देखरेख के बिना ज्यादा देर तक इसे करने से गंभीर चोट का खतरा भी रहता है।