छत्तीसगढ़

इंद्रियों पर नियंत्रण ही संयम धर्म है-भाई सुरेश मोदी।


रायपुर:दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के चल रहे दसलक्षण पर्व के आज छटवें दिन उत्तम संयम धर्म की पूजा की गई जिसके अंतर्गत 1008 श्री शांति नाथ भगवान को पांडुक शीला पर वीराजित कर अभषेक शांति धारा के साथ संगीतमयी सामूहिक पूजन की गई। उपरोक्त जानकारी मंदिर के अध्यक्ष हिमांशु जैन ने दी। श्री जैन ने आगे बताया कि प्रथम शांति धारा करने का सौभाग्य अजय कुमार भरत कुमार रांवका परिवार एवम द्वितीय शांति धारा का सौभाग्य नरेंद्र कुमार लक्ष कुमार ट्ठोल्या परिवार को प्राप्त हुआ।
10 लक्षण पर्व के अंतर्गत आज 6वे दिवस उत्तम संयम धर्म मनाया गया ।भाई सुरेश मोदी ने बताया कि उतम संयम धर्म को सुगंध दशमी के रूप में भी मनाया जाता है सुगंध दशमी की कथा के बारे में जैसा कि शास्त्रों में लिखा है पूर्व में एक राजकुमारी हुआ करती थी जिसने मुनिराज को देखकर उनकी निंदा आलोचना की थी इसके प्रभाव से आने वाले भव में उसे शरीर तो प्राप्त हुआ था लेकिन उस शरीर से इतनी दुर्गंध आती थी की कोई भी व्यक्ति उसके पास आना नहीं चाहता था वह जहां भी जाती उसे अवहेलना निंदा का सामना करना पड़ता था फिर एक दिन अचानक उसे दिगंबर साधु के दर्शन हुए और उसने वहां जाकर मुनिराज के चरणों में नमस्कार कर अपनी इस व्यथा को कहा तब मुनिराज ने उसे उसके पूर्व के बारे में बताया की मुनि निंदा के परिणाम स्वरूप आपको यह शरीर प्राप्त हुआ है अगर आप दशमी के दिन शीतल नाथ भगवान की मन से पूजा करेंगे इसके प्रभाव से आपका यह शरीर दुर्गंध रहित हो जाएगा उसने मुनिराज की बात सुनकर भगवान की पूजा अर्चना प्रारंभ की जिससे उसका शरीर सुगंध में हो गया और तभी से यह सुगंध दशमी का पर्व मनाया जाने लगा हम सभी को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की मुनि की आराधना करें या ना करें उनकी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि उनकी निंदा करने से अनंतानंत कष्टों को भोगना पड़ता है आज उत्तम संयम दिवस के दिन हमें अपनी वाणी में और अपनी समस्त इंद्रियों में संयम धारण करना चाहिए जिससे हम सभी अपने जीवन में व्रत नियमों का पालन करते हुए मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होते रहे इस पंचम काल में मोक्ष तो है नहीं लेकिन अगर हम इन दश धर्म को अंगीकार करते हैं , धर्म को धारण करते हैं, सोलहकारण भावनाओं का चिंतवन करते हैं तो एक दिन निश्चित ही वह समय आएगा जब हम इस जन्म मरण से दुख के दूर होकर मोक्ष पद को प्राप्त करेंगे । इस माया रूपी संसार मे मन को स्थिर रखने के लिए कामनाओ पर नियंत्रण आवश्यक है, और इंद्रियों पर नियत्रण ही संयम धर्म है।
विजय जैन–91112 10123

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