शरीर बदलने वाली आत्मा ही सत्य है:भाई सुरेश मोदी

रायपुर। दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के चल रहे दशलक्षण पर्व के अंतर्गत अमलतास केसल , कचना स्थित 1008 श्री मुनिसुव्रत नाथ मंदिर में सोमवार को उत्तम सत्य धर्म मनाया गया , प्रातः 7-15 बजे 1008 श्री चंदाप्रभु भगवान को पांडुक शिला पर वीराजित कर अभिषेक शांति धारा की गई।ज्ञात हो कि आज की शांति धारा व्रतियों उज्जवल गोधा, हिमांशु जैन, हर्षित जैन एवं आशीष मोदी द्वारा की गई। तत्पश्चात संगीत मई सामुहिक पूजा की गईउपरोक्त जानकारी मंदिर के अध्यक्ष हिमांशु जैन ने दी।उत्तम सत्य धर्म पर चर्चा करते हुए भाई सुरेश मोदी ने बताया कि सत्य का अर्थ यह समझा जाता है कि जैसा देखा, जाना, सुना हो उसे वैसे ही कहना ” सत्य ” है। और जैसा देखा,जाना, सुना हो उसे वैसे ना कहकर उस से अलग कहना ” असत्य” है।परंतु सत्य का अर्थ सत्य वचन बोलना नही सत्य को खोजना सत्यको समझना और सत्य रूप रहना होता है।सत्य वचन को ही सत्य समझना यह बहुत कुछ नुकसान देह हो सकता है,क्योकि इससे सत्य को खोजना बंद हो जाता है। फिर सत्य क्या हैऔर असत्य क्या है इसे पहचानने के लिए सत्य को खोजना चाहिए।सत्य अर्थात सत्ता, जो हमेशा रहता है उसे सत्य कहते है,जो हमेशा नही रहता अभी है और बाद बाद में नहीँ उसे असत्य कहते है।जैसे शरीर ,कुटुम्ब, धन, यौवन, यश, पद, प्रतिष्ठा सभि हमेशा नही रहते ,नष्ट हो जाते है इसी लिए यह सत्य नही है। फिर हमारेiजीवन मे ऐसा क्या है हमेशा है शास्वत है?इसे खोजना होगा शरीर को बदलने वाली आत्मा ही हमेशा रहने से वो शास्वत सत्य है, स्तताहै क्योंकि उसका कभी नाश नही होता यह सत्य समझने पर हम हमारा जीवन सत्य की ओर मोड़ते है, अर्थात शरीर के हित मे नहिआत्महीत के लिए जीवन जीते है इस लिए आत्मा को खोजना, समझना और उसके हित मे ही जीवन लगाना सत्य धर्म है। मुनिराज भी कुटुम्ब , धन,ऐश्वर्य का त्याग कर स्वयं कीआत्मा के हित के लिए साधना करते है इस लिए वे ही उत्तम धर्म के धारक है। हम भी अपनी शक्ति अनुसार असत्य का लक्छ छोड़ कर सत्य के लिए आत्मा के कल्याण के लिए जीवन लगाए।विजय जैन–91112 10123

