छत्तीसगढ़

इच्छाओं पर नियंत्रण ही उत्तम आकिंचन् धर्म है : भाई सुरेश मोदी


रायपुर:दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के चल रहे दसलक्षण पर्व ( पर्युषण पर्व ) के नवम दीवस पर अमलतास केसल , कचना स्तिथ 1008 श्री मुनिसुव्रत नाथ दिगम्बर जैन मंदिर में ” अकिंचन धर्म ” की पूजा की गई। प्रातः 7,20 बजे 1008 श्री मुनिसुव्रत नाथ भगवान को पांडुक शिला पर वीराजित कर अभिषेक के पष्चात श्री बी, पी, जैन परिवार , श्री संजय, विभा ,ऐश्वर्य ,आयुष, रिया परिवार , डॉ, अमित , नेहा,आरूप, आशी जैन परिवार, एवं श्री शीतल चंद पालीवाल परिवार द्वारा शांतिधारा की गई। उपरोक्त जानकारी मंदिर के अध्यक्ष हिमांशु जैन ने दी ।
उत्तम आकिंचन धर्म के बारे में विस्तार से बताते हुए भाई सुरेश मोदी ने कहा कि आकिंचन्य धर्म का अर्थ होता है कि किंचित मात्र भी विकल्प का लोप होना अर्थात निर्विकल्प होना, इस शरीर में एक सुई के धागे जैसे जितना भी वस्त्र ना होना अर्थात दिगम्बरत्व को धारण करना ही उत्तम आकिंचन धर्म कहलाता है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी समाज और राष्ट्र के बीच रहते हुए भविष्य की अनेक योजनाएं बनाता है यह कभी भी समाप्त नहीं होती बल्कि एक के बाद एक बढ़ती ही जाती है यह ज्ञानी प्राणी अपने अमूल्य जीवन को ऐसे नश्वर और क्षणभंगुर पदार्थों को ,जो आत्मा से भिन्न है अपना मानने में ही व्यर्थ समाप्त कर रहा है जब तक जीव आसक्ति का त्याग नहीं करेगा तब तक उसे अनाशक्ति का गुण प्राप्त नहीं होगा, महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाना इच्छाओं पर नियंत्रण रखना ही उत्तम आकिंचन्य धर्म है। मंदिर के अध्यक्ष हिमांशु जैन ने बताया कि दसलक्षण पर्व के अंतिम दीवस अनंत चौदस पर” उत्तम ब्रम्हचर्य पर्व ” की पूजा की जाएगी एवं 1008 श्री वासुपूज्य भगवान के मोक्ष कल्याणक पर निर्वाण लाडू चढ़ाया जाएगा।

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