छत्तीसगढ़

सुशासन की कसौटी पर सरकार अपनी नीतियों और योजनाओं को परखने निकली

रायपुर : छत्तीसगढ़ में सुशासन की कसौटी पर सरकार अपनी नीतियों और योजनाओं को परखने निकली, लेकिन ‘सुशासन तिहार’ अब सियासत का मुद्दा बन गया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय खुद जनता के बीच पहुंचकर व्यवस्थाओं की जमीनी हकीकत से रूबरू हुए। वहीं, विपक्ष ने इसे प्रचार का नया तरीका बताते हुए राज्य सरकार पर खामियों को छुपाने का आरोप लगाया है।
तीन चरणों में पूरा हुआ सुशासन तिहार

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राज्य सरकार द्वारा आयोजित सुशासन तिहार तीन चरणों में संपन्न हुआ:

पहला चरण (8 अप्रैल): जनसुनवाई और आवेदनों की प्राप्ति
दूसरा चरण (12 अप्रैल – 4 मई): अधिकारियों द्वारा आवेदन का निराकरण
तीसरा चरण (5 मई से): मुख्यमंत्री ने स्वयं जिलों का दौरा किया

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, करीब 40 लाख आवेदन मिले, जिनमें से 60 फीसदी से अधिक का समाधान किया गया है। हालांकि इस आंकड़े पर कांग्रेस ने सवाल खड़े किए हैं।
सीएम का ‘सरप्राइज विजिट’

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सुशासन तिहार के दौरान किसी भी जिले, गांव या कस्बे में बिना पूर्व सूचना के दौरा किया। उन्होंने लोगों से सीधे संवाद कर समस्याएं सुनीं और तत्काल निराकरण के निर्देश दिए। उन्होंने भ्रष्टाचार पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि “अगर कोई पीएम आवास योजना में एक रुपया भी रिश्वत मांगे, तो जिम्मेदार कलेक्टर पर कार्रवाई होगी।”

मुख्यमंत्री ने मौके पर कई घोषणाएं भी कीं और खराब प्रदर्शन करने वाले अधिकारियों को फटकारा, वहीं अच्छे कार्य करने वालों की तारीफ भी की।

कांग्रेस का पलटवार: “प्रचार नहीं, परिणाम दो”

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने सरकार के दावों पर सीधे सवाल उठाते हुए कहा कि,
“अगर 95% आवेदनों का निराकरण हो चुका है, तो फिर राज्य में कोई समस्या ही नहीं बची? सरकार बताएं कि डेढ़ साल में ऐसी कौन सी योजना लाई है जिससे जनता को वास्तविक लाभ मिला हो।”

बैज ने इसे ‘सरकारी पीठ थपथपाने का इवेंट’ करार देते हुए कहा कि गांवों में न तो कोई ठोस काम हो रहा है और न ही योजनाओं का क्रियान्वयन दिख रहा है।
क्या वाकई बदलेगी व्यवस्था?

यह पहली बार नहीं है जब कोई सरकार जनसंपर्क कार्यक्रम के जरिए जनता के बीच पहुंची हो, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव और वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी ने सुशासन तिहार को विशेष बना दिया। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या इस अभियान का असर प्रशासनिक सुधारों में दिखेगा? या फिर यह भी एक राजनीतिक शो बनकर रह जाएगा?

सुशासन तिहार ने राज्य की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है—क्या जनता से सीधे संवाद और मौके पर कार्रवाई से वाकई व्यवस्था सुधरेगी, या फिर यह सिर्फ लोकसभा चुनाव से पहले छवि चमकाने की कवायद है? सवाल अब भी कायम है सिस्टम बदलेगा या फिर सबकुछ ‘ज्यों का त्यों’ बना रहेगा?

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