सुशासन तिहार–उम्मीदों का उत्सव और नये छत्तीसगढ़ की दस्तक


राजनीतिक प्रयोग नहीं, बल्कि लोकतंत्र की परिपक्वता का प्रतीक
जब कोई सरकार अपने कार्यों का मूल्यांकन जनता से करवाने का साहस दिखाती है, तो वह केवल राजनीतिक प्रयोग नहीं, बल्कि लोकतंत्र की परिपक्वता का प्रतीक बन जाता है।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में आयोजित ‘सुशासन तिहार’ इसी विचार का सशक्त उदाहरण है। मात्र 16 माह के कार्यकाल में सरकार ने न केवल योजनाओं को ज़मीन पर उतारा, बल्कि उनके प्रभाव की पड़ताल के लिए खुद को ‘जन अदालत’ में प्रस्तुत भी किया, यह पहल स्वागत योग्य ही नहीं, अनुकरणीय भी है।
8 से 11 अप्रैल तक आयोजित ‘सुशासन तिहार’ केवल एक औपचारिक सरकारी अभियान नहीं, बल्कि यह जनता और शासन के बीच सीधे संवाद की एक नई परंपरा की शुरुआत भी है। गांव से लेकर शहर तक, ‘समाधान पेटियों’ और ऑनलाइन माध्यमों से प्रदेश के लाखों लोगों ने अपनी समस्याएं, शिकायत, सुझाव और अपेक्षाएं सरकार के समक्ष रखीं हुई हैं। इन आवेदनों पर त्वरित कार्यवाही और समाधान शिविरों के माध्यम से जनता तक पहुँचना, एक नई प्रशासनिक संवेदनशीलता का परिचायक है।
विष्णु सरकार की 16 माह की यह यात्रा कई मायनों में उल्लेखनीय रही है। लोकसभा, नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों के दौरान आचार संहिता अवधि को छोड़ने के बावजूद सरकार ने महज़ एक वर्ष में किसानों, ग्रामीणों, महिलाओं, युवाओं और आदिवासी समुदाय के लिए अनेक महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं।महतारी वंदना योजना, सबसे अधिक कीमत पर धान खरीदी, दो साल का बकाया धान बोनस का वितरण, तेंदूपत्ता दरों में वृद्धि, आदिवासी संस्कृति को संरक्षण, युवाओं के लिए नॉकरी के अवसर साथ ही उनके साथ हुए अन्याय के खिलाफ सीबीआई जाँच, कौशल विकास मिशन और शांति के लिए नक्सल क्षेत्रों में संवाद की नीति..। ये सभी निर्णय केवल नीतिगत घोषणाएं नहीं, बल्कि ज़मीनी परिवर्तन की ओर ठोस कदम हैं।
बस्तर जैसे क्षेत्रों में जहाँ पहले बंदूक की आवाज़ गूंजती थी, बम से दहल रहे थे, बारूद की गंध इस खूबसूरत फिजा को प्रदूषित कर रहे थे लेकिन विगत 16 माह में अब स्कूल की घंटियाँ और विकास की पदचाप सुनाई देती है। सरकार की ‘गोली से नहीं-बोली से मिलेगी समाधान’ की नीति व निर्णय ने वहाँ भरोसे और बदलाव की नई बुनियाद रखी है।
राज्य का वर्ष 2025-26 का 1.65 लाख करोड़ का बजट इस बात का प्रमाण है कि सरकार की प्राथमिकता केवल कांक्रीट के ढांचे नहीं, बल्कि मानव विकास, सामाजिक न्याय और समावेशी अर्थव्यवस्था है। डिजिटल ट्रैकिंग, समाधान की समय-सीमा और जवाबदेह शासन ने लालफीताशाही पर करारा प्रहार किया है।
‘सुशासन तिहार’ केवल सरकार की योजनाओं का प्रदर्शन नहीं, बल्कि यह नागरिक भागीदारी की एक जीवंत मिसाल है। शासन का यह नया मॉडल न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक दिशा-सूचक बन सकता है। निस्संदेह छत्तीसगढ़ अब एक ऐसे रास्ते पर है, जहाँ विश्वास, विकास और संवाद तीनों साथ चल रहे हैं और यही है किसी भी लोकतंत्र की सबसे बड़ी सफलता है।
(विजय मानिकपुरी, कोरिया)