धर्म-अध्यात्म

कर्बला की जंग और हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का दिन है मुहर्रम,जानें 2025 में कब है

मोहर्रम की शुरुआत के साथ इस्लामी नववर्ष की शुरुआत हो जाती है. इस नववर्ष को हिजरी नववर्ष भी कहा जाता है. इस्लाम में मोहर्रम का महत्व किसी से छिपा नहीं है. इस दिन इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. इमाम हुसैन पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे थे. मोहर्रम पर कर्बला की जंग को याद किया जाता है और हुसैन की शहादत के लिए मातम मनाया जाता है.मुहर्रम वर्ष 2025 में 27 जून दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा. आइये कर्बला की जंग और इमाम हुसैन की शहादत के बारे में विस्तार से जानते हैं.

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मुहर्रम पर होती है इस्लामिक नववर्ष की शुरुआत : मोहर्रम का महीना इस्लामी नव वर्ष का पहला महीना होता है. मुसलमानों में इस महीने को बलिदान का महीना माना जाता है. इस दिन अल्लाह के नेक बंदे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. इसलिए मोहर्रम के दिन हुसैन को याद किया जाता है और उनका मातम मनाया जाता है. इस दिन हुसैन की याद में ताजिया का जुलूस मुस्लिम समुदाय के लोग मातम मनाते हुए और रोते हुए निकालते हैं.

कर्बला की जंग में हुई हुसैन की शहादत : लगभग 1400 वर्ष पहले इस दिन कर्बला की जंग हुई थी. कर्बला की जंग के दौरान पैगंबर मोहम्मद की सबसे छोटे नवासे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. मदीना के पास मुआवजा नमक शासन की मृत्यु के बाद उसके बेटे यजीद को सत्ता सौंप गई. यह जीत बहुत ही क्रूर और जल्लाद किस्म का शासक था. वह इस्लाम के समकक्ष अपना खुद का एक मजहब का विस्तार करना चाहता था. इमाम हुसैन लोगों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे. इमाम के समर्थकों को यजीद ने खुद को इस्लाम का खलीफा करने का पैगाम दिया.

हुसैन के समर्थकों ने नहीं माना यजीद का पैगाम : यजीद के पैगाम को हुसैन के समर्थकों ने मानने से मना कर दिया. जिससे नाराज यजीद ने अपनी फौज के साथ हुसैन के काफिले के ऊपर हमला कर दिया. यजीद के पास बड़ी सेना और हथियार थे उसके बावजूद भी हुसैन ने यजीद के सामने झुकने से मना कर दिया. दोनों की बीच मुकाबला के दौरान मोहर्रम की 10 तारीख को हुसैन और उनके तमाम साथियों को घेर कर सरेआम का कत्ल कर दिया. इमाम हुसैन के बेटे अली अकबर, अली असगर एवं भतीजे कासिल को भी मार दिया गया. इस्लाम को मानने वाले लोग मोहर्रम पर हुसैन की शहादत का शोक मनाते हैं एवं ताजिए का जुलूस निकालकर उन्हें याद करते हैं.

हिजरी संवत का महत्व : हिजरी संवत इस्लामी नववर्ष को कहा जाता है. इसे इस्लाम में रमजान ईद उल फितर, ईद उल अजहा के अलावा सभी त्यौहार एवं धार्मिक तथा महत्वपूर्ण अवसरों की तिथियां और समय की गणना के लिए किया जाता है. इसकी शुरुआत मोहर्रम के महीने से होती है.

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